समर्पण न मुझमें रंग, न मुझमें रूप, न दीखे मेरा कहीं शरीर। किन्तु मेरे प्राणों पर हाय, टूटते हो तुम आलमगीर! मधुरिमे! तू कितनी लाचार, अभागा मैं वीणा का तार। विवश मैं तो वीणा का तार। माखनलाल चतुर्व...| Swayamkatha